Tuesday, May 11, 2010

जज़्बात

तुम तन्हा तन्हा सा दिन हो
मैं हूँ इक तन्हा सी रात
बीन पुराने एहसासों को
कह वो एक मुकम्मल बात
कहीं बरस कर लौट गया हो
इक बादल का टुकड़ा जो
किसी पुराने खंडहर से
जेसे गुजरे कोई बारात
मैं हूँ प्यासी मरू भूमि सी
तुम इक सिमटे से दरिया
बिना किसी जज्बे के केसे
जांचोगे मेरे जज्बात
प्यार की गहरी झील मैं खो कर
दिल से दे दिल को आवाज
फिर जानेगा जज्बों को तू
फिर समझेगा मेरे जज़्बात

Monday, April 12, 2010

अपना कौन है किसे दिल अपना कहता है

वो जो दिन रात दिल को दर्द देता है

या वो जो दिल को बेकरारी और आँखों को आंसू देता है

ये दिल आखिर क्या है क्यूँ बनाया इसको

क्या दर्द सहने को जिगर में सजाया इसको

ये कमबख्त तो आंसुओं को भी प्यार का इनाम कहता है

जो सताता है इसे उसी बेरहम को प्यार करता है

ये दिल इन्सान की कमजोरी का निशान होता है

जो धड़कता तो है सीने में मगर आँखों में इसकी बेबसी का पैगाम होता है

इसके पैगाम में उस बेवफा का नाम होता है

जो देता है सौगात में दर्द और आसू इसको

ये बदकिस्मत फिर भी उसी को प्यार करता है