Tuesday, May 11, 2010

जज़्बात

तुम तन्हा तन्हा सा दिन हो
मैं हूँ इक तन्हा सी रात
बीन पुराने एहसासों को
कह वो एक मुकम्मल बात
कहीं बरस कर लौट गया हो
इक बादल का टुकड़ा जो
किसी पुराने खंडहर से
जेसे गुजरे कोई बारात
मैं हूँ प्यासी मरू भूमि सी
तुम इक सिमटे से दरिया
बिना किसी जज्बे के केसे
जांचोगे मेरे जज्बात
प्यार की गहरी झील मैं खो कर
दिल से दे दिल को आवाज
फिर जानेगा जज्बों को तू
फिर समझेगा मेरे जज़्बात

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