आज कुछ भी लिखना नही कुछ पूछना है सब से,
हम अपने माता पिता या अपने बड़ो की कितनी इज्जत करते है
मैं भी एक ऐसी लड़की को जानती हूँ जो वक़्त पड़ने पर किसी की भी हेल्प करती थी
कुछ मस्ती कुछ खुशियों में झूमती वो मस्त लड़की
जब कॉलेज या ऑफिस जाती तो बस में जब भी कोई बड़ा बुडा मिलता
वो झट से उठा जाती और इज्जत से उन को बेठने को बोलती
उसको लगता था की हम सब को ऐसा ही करना चाहिए ऐसा करके
उस के मन को ख़ुशी मिलती थी ! पर एक दिन वो कुछ दिनों के बाद अपने घर आई ( शादी के बाद )
तो उस को पता चला की उसके पापा की अचानक बस में तबियत ख़राब हो गयी थी
उस के पापा की उमर कुछ ६२ साल होगी और वो बजुर्ग आदमी
उस बस में सब से बोलते रहे के मुझे कुछ हो रहा है मैं गिर जाऊंगा
पर लोग तो समझो पत्थर के थे किसी ने भी उस लड़की के पापा को सिट नही दी
उन्का का रंग पीला पड़ग्या पर एक ऐसा इन्सान उस बस में नही था जो उन का हाथ पकड़ कर
बोलता की आप बैठ जायो किसी तरह वो बस में फर्श पर निचे ही बैठ गए उस दिन उनको हॉस्पिटल से घर तक आना भरी हो गया किसी तरह वो घर तक तो आ ही गए पर आज वो लड़की ये सोचती है की मैं तो सब के लिए उठ जाती थी तो आज वक़्त पे मेरे पापा के साथ क्यों ऐसा हुआ क्या हम इतना मर चुके है की एक बड़े इन्सान के लिये हम उठ नहीं सकते क्या उस बस में इन्सान थे या जानवर जिनके मन में दया या प्यार ही नही था आज मैं वो लड़की आप सब से पूछती हूँ की हम सब के मन में अपने बड़ो के लिए कितनी भी इज्ज़त है क्या की हम में से किसी एक ने भी कुछ ऐसा किया है जो हमारे बड़ो को खुश कर सके किसी राह पे चलते किसी बजुर्ग का हाथ थाम कर उनसे पूछअ है की आप को कहा जाना है या आप ठीक है या क्या मै आप की कुछ हेल्प कर सकता या करसकती हु कहते है बड़ो में भगवन दिखता है हम मुन्दिर में भगवन को खोजते है पर सच में भगवन को पूछते नहीं आखिर क्यों क्या हमारे जज्बात इतना मर चुके है या हम ही मर चुके है ?????????????????
jyotie oberoi
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